1857 के बगावती क्षेत्रों पर अंग्रेजों की खास नजर
पहली जंग-ए-आजादी के दौरान हांसी और हिसार के क्षेत्रों से अंग्रेजी राज के सफाई में फतेहाबाद इलाके के लोगों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी। हिसार की मुक्ति का ऐलान करके शासन कायम करने वाला महान देशभक्त शहजादा मोहम्मद आजम भट्टू का कस्टम पेट्रोल था। जिसकी रहनुमाई में फतेहाबाद हांसी और हिसार के लोगों ने अंग्रेजी सेना के कई बार छक्के छुड़ाए थे। बगावत के बाद अगस्त 1857 मैं फिरोजपुर का डिप्टी कमिश्नर जनरल वार्न कोर्टलैंड राजा बीकानेर की मदद से हांसी, हिसार और सिरसा पर दोबारा नियंत्रण करने के लिए बढ़ रहा था तो उसका रानियां के नवाब नूर मोहम्मद खां के नेतृत्व में ओढां और छतरियां गांव में जबरदस्त मुकाबला किया था। जिसमें सैंकड़ों देशभक्त शहीद हुए थे। अंग्रेजी फौज ने उपरोक्त दोनों गांव को जला दिया था।
फतेहाबाद पहुंचने पर जनरल वार्न कोर्टलैंड को भट्टियों राघड़ों तथा दूसरे लोगों ने कई बार घेरा और उसकी सेना का काफी नुकसान किया। जिसमें मुख्य भिरडाना, भोडिया खेड़ा, बीघड़, गोरखपुर और अग्रोहा के साथ-साथ धांगड़ और बड़ोपल के लोगों की भागीदारी थी। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुला प्रतिरोध संगठित करके यह इलाका अंग्रेजों की नजर में बागियों के गांव कहलाते थे, जिनको अंग्रेज हर समय शक की निगाह से देखते थे। हालांकि 16 नवंबर को नसीबपुर (नारनौल) में राव तुलाराम, राव रामगोपाल बहादुरगढ़ के नवाब समद खां तथा शहजादा मोहम्मद आजम भट्टू के नेतृत्व में लड़ी गई ऐतिहासिक जंग में भारतीय योद्धाओं ने अपनी बहादुरी युद्ध कौशल और बलिदान की इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ दी थी। परंतु परिस्थितियां प्रतिकूल होने के कारण भारतीय देशभक्त जंग-ए-आजादी में पराजित हो गए और क्रोधित अंग्रेजों ने किसानों को अपने हमलों का प्रमुख शिकार बनाया।
फतेहाबाद पहुंचने पर जनरल वार्न कोर्टलैंड को भट्टियों राघड़ों तथा दूसरे लोगों ने कई बार घेरा और उसकी सेना का काफी नुकसान किया। जिसमें मुख्य भिरडाना, भोडिया खेड़ा, बीघड़, गोरखपुर और अग्रोहा के साथ-साथ धांगड़ और बड़ोपल के लोगों की भागीदारी थी। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुला प्रतिरोध संगठित करके यह इलाका अंग्रेजों की नजर में बागियों के गांव कहलाते थे, जिनको अंग्रेज हर समय शक की निगाह से देखते थे। हालांकि 16 नवंबर को नसीबपुर (नारनौल) में राव तुलाराम, राव रामगोपाल बहादुरगढ़ के नवाब समद खां तथा शहजादा मोहम्मद आजम भट्टू के नेतृत्व में लड़ी गई ऐतिहासिक जंग में भारतीय योद्धाओं ने अपनी बहादुरी युद्ध कौशल और बलिदान की इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ दी थी। परंतु परिस्थितियां प्रतिकूल होने के कारण भारतीय देशभक्त जंग-ए-आजादी में पराजित हो गए और क्रोधित अंग्रेजों ने किसानों को अपने हमलों का प्रमुख शिकार बनाया।
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