स्किनर एस्टेट के मातहत गांव धांगड़ के हालात
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व कृषि भूमि पर किसानों से निर्धारित कर लिया जाता था। अकाल तथा दूसरी प्राकृतिक आपदाओं के समय शासकों (खासकर मुगल शासन के दौरान) द्वारा पीड़ित जनता का मालिया माफ करके जनता को राहत इमदाद दी जाती थी। किसी भी किसान की मालिया वसूली न होने के कारण बेदखली नहीं की जाती थी।
अंग्रेजों ने अपने राज और लूटपाट की नींव मजबूत करने के लिए सदियों से चली आ रही 'भूमि व्यवस्था' को बदलकर 'स्थाई बंदोबस्त' के नाम पर किसानों से मालिकाना हक छीनकर जागीरदारों, इनामदारों और ठेकेदारों की बिचोलिया व्यवस्था कायम कर दी।
जिसके तहत किसानों के सिर पर हर समय बेदखली की तलवार लटकती रहती थी किसानों को हर तरह के शोषण अपमान और दमन का शिकार बना दिया गया था। इस इलाके में जो महलवाड़ी प्रथा को अपनाया गया उस प्रथा के तहत 50% तक फसल देने के बावजूद भी कृषक अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करता था क्योंकि अंग्रेजी राज की वसूली बड़ी क्रूर थी धीरे-धीरे किसानों पर कर्ज का भार चढ़ता गया क्योंकि मालिया सूदखोरों से कर्ज लेकर दिया जाता था। जिस मार से दूसरे गांव के किसानों की तरह ही धांगड़़ का किसान भी बहुत पीड़ित था।
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