यूं तो उन स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा हर गांव में सुनने का मिल जाती है। मगर धांगड़ गांव की भूमिका नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। जब भी देश में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का जिक्र आता है तो बात धांगड़ से ही शुरू होती है। ये ऐसा गांव है जिसकी धरती पर कई शूरवीर पैदा हुए हैं। आज के नौजवान उन्हें भले ही न जानते हों, लेकिन इतिहास में सब कुछ दर्ज है।
इतिहास बताता है कि आजादी की लड़ाई का अभिन्न अंग किसान आंदोलन रहे हैं। एक तरफ आजादी की लड़ाई तो दूसरी तरफ किसान आंदोलन। दोनों आंदोलन समानांतर रहते हुए भी एक-दूसरे के पूरक साबित हुए थे। वैसे देश के बंटवारे के बाद काफी परिवार यहां से पाकिस्तान चले गए थे। इस कारण इतिहास के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी जुटा पाना कठिन है। बुजुर्ग बताते हैं कि गांव मंगाली से धांगड़ जैसे कई एतिहासिक गांव हैं, जिनका इस संघर्ष में योगदान रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थिति धांगड़ ऐसा गांव है जिसके स्वतंत्रता सेनानियों ने अन्याय का डटकर मुकाबला किया था। सूझबूझ से कानूनी लड़ाई लड़कर फिरंगियों के राज में 8 किसानों की फांसियां तथा एक नाबालिग को उम्रकैद की सजा खत्म करवाई थी।
हमेशा याद रहेंगे ये 14 स्वतंत्रता सैनानी
धांगड़ गांव के 14 शूरवीरों के संघर्ष की कहानियां आज भी बुजुर्ग जुबानी सुनाते हैं। बताते हैं कि उन आंदोलनकारियों ने अलग-अलग समय पर जेल काटी थी। इसके बावजूद संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ा। इनमें
बगड़ावत, नत्थूराम तरड़, गणपत काजला ने मुलतान जेल का सफर किया था। ताराचंद सेठी, हरीराम भादू, धनाराम, रणजीत, रामरतन पूनियां, हरलाल, सहीराम, पोकर राम, प्रेम नारायण, बीरबल भादू तथा शिवलाल लाहौर में जेल में कैद रहे थे। सजा पूरी करने के बाद भी संघर्ष जारी रहा था।
बगड़ावत, नत्थूराम तरड़, गणपत काजला ने मुलतान जेल का सफर किया था। ताराचंद सेठी, हरीराम भादू, धनाराम, रणजीत, रामरतन पूनियां, हरलाल, सहीराम, पोकर राम, प्रेम नारायण, बीरबल भादू तथा शिवलाल लाहौर में जेल में कैद रहे थे। सजा पूरी करने के बाद भी संघर्ष जारी रहा था।
जानिये स्वामी आत्मानंद की गौरव गाथा
वर्ष 1930-31 के दौर में शहीदे आजम भगत सिंह व दूसरे क्रांतिकारियों द्वारा गठित हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना व नौजवान भारत सभा अंग्रेजी शासन के खिलाफ लगातार संघर्षरत थे। उस दौरान उनके आंदोलन से हिसार जिले के तीन सन्यासी बहुत प्रभावित हुए थे। इन सन्यासियों में स्वामी आत्मानंद, स्वामी ब्रह्मानंद व स्वामी बेधड़क थे। तीनों ही सन्यासी अपने-अपने तरीके से उनका सहयोग करते रहे। तब फतेहाबाद जिला हिसार का ही हिस्सा था। उनमें से स्वामी आत्मानंद की याद में आज भी धांगड़ में ही स्माधि बनी हुई है। बताते हैं कि स्वामी आत्मानंद का नाम सक्रिय व प्रमुख कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्ध था। वर्ष 1921 में अहसयोग आंदोलन में महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में आत्मानंद सक्रिय हुए थे। इसके बाद लगातार योगदान देते रहे। वर्ष 1931 में वह देश भक्त स्वामी केशवानंद के जत्थे में गिरफ्तार हो गए। अदालत ने स्वामी आत्मानंद को एक साल की सख्त कैद की सजा दी थी। बाद में उन्हें गांधी-इर्विन समझौता के तहत सजा पूरी होने से पूर्व रिहा कर दिया गया था। इसके बाद भी वह आजादी के आंदोलन में सक्रिय रहे थे।
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